Thursday 3 August 2017

जैन धर्म की गणित

जैन धर्म की  गणित
एक बार जरूर पढ़िए ।
1- आत्मा 1 होती है
2 - जीव -2
3 - योग
4 - गतियां
5 - पाप
6 - द्रव्य
7 - तत्त्व
8 - कर्म
9 - पदार्थ
10 - धर्म
11 - प्रतिमा
12 - भावना
13 - चारित्र
14 - गुणस्थान
15 - प्रमाद
16 - कषाय
17 - मरण
18 - दोष
19 - जीव समास
20 - प्ररूपना
21 - ओदायिकभाव
22 - परिषह
23 - वर्गना
24 - तीर्थकर
25 - क्रियाए
26 - प्रथव्या
27 - पंचेंद्रियोंके विषय
28 - साधू के मूलगुण
29 - मनुष्योंकी संख्या 29 अंक प्रमाण
30 - ण मोकारमंत्र में 30 व्यंजन होते है
31 - प्रथम पटल में 31 पटल है
32 - अन्तराय
33 - सर्वार्थसिद्धि में 33सागर आयु
34 - अतिशय
35 - णमोकारमंत्र में 35 अक्षरहोते है
36 - आचार्योंके मूलगुण
37 - पाँचवे गुणस्थान में आश्रवद्वार 37 होते है
38 - भगवान् पार्श्वनाथ के  समोवशरं में 38 हजार आर्यिकाए थी
39 - तत्वार्थसूत्र के तीसरे अध्याय के सूत्र
40 - भवनवासी
41 - चार आराधनाओ के 41 प्रभेद
42 - तत्वार्थसूत्र के चौथे अध्याय के सूत्र
43 - तीसरे गुणस्थान में आस्रवद्वार 43
44 - कल्याणमंदिर के श्लोक
45 - मनुष्य लोक का विस्तार 45 लाख योजन
46 - अरिहंतों के मुलगुण
47 - घाति या कर्म
48 - भक्तामर में 48 श्लोक है
49 - नरक पटल
50 - सम्यक्त्व के 50 मल
51 - इष्टोपदेश के श्लोक 51 होते हे
52 - नंदीश्वरद्वीप के चैताल्य 52 होते हे
53 - जीव के भाव 53 होते हे
54 - बडे समाधिमरण के छंद 54 होते है
55 - सोलहवे स्वर्ग की देवियो की आयु 55 पल्य होती है
56 - जम्बूद्वीप में नक्षत्र 56 होते है
57 - आस्रव के कुल भेद 57 होते है
58 - द्रव्यसंग्रह मे गाथा 58 होती है
59 - सातवे गुणस्थान मे बंधने वाले कर्म 59 होते है
60 - श्रावकव्रतो के अतिचार 60 होते है
61 - आचार्य , उपाध्याय के कुल मूलगुण 61 होते है
62 - पुद्गल विपाकी कर्म 62 होते है
63 - शलाका पुरुष 63 होते है
64 - ऋद्धियाँ 64 होती है
65 - दारहवे गुणस्थान मे अनुदय कर्म 65 होते है
66 - भगवान महावीर की वाणी नहि खिरने के दिन 66 थे
67 - पाँचवे गुणस्थान मे बंधने वाले कर्म 67 होते है
68 - पुण्यकर्म 68 होते है
69 - सम्मूर्च्छन तिर्यंचों के 69 भेद होते है
70 - ढाई द्वीप की मुख्य नदियाँ 70 होती है
71 - अरिहंत , उपाध्याय परमेष्ठी के मूलगुण 71 होते है
72 - भगवान महावीर की आयु 72 वर्ष थी
73 - कषायमार्गणा मे सातवे गुणस्थान मे उदयकर्म 73 होते है
74 - तत्वसार ग्रन्थ की गाथा 74 होती है
75 - गुण संक्रमण के कर्म 75 होते है
76 - द्वीपकुमार के भवन 76 होते है
77 - भगवान श्रेयांसनाथ के गणधर 77 थे
78 - जीव विपाकी कर्म 78 होते है
79 - अरिहंत , उपाध्याय , सिद्धपरमेष्ठी के कुल मूलगुण 79 होते है
80 - पंचमेरू के चैत्यालय 80 होते है
81 - भगवान शान्तिनाथ जी , कुन्थुनाथ जी और पार्श्वनाथ जी के गणधरो की संख्या मिलाकर 81 हो जाति है
82 - अरिहंत और आचार्य परमेष्ठी के कुल मूलगुण 82 होते है
83 - तत्वार्थसूत्र के आठवें ,नवें और दसवें अध्याय के सूत्रो की संख्या मिलाकर 83 हो जाति है
84 - णमोकारमन्त्र से 84 लाख मन्त्र निकलते है
85 - चौदह गुणस्थान मे सत्वकर्म 85 होते है
86 - भगवान सुपार्श्वनाथ जी के समवशरण मे वादी मुनीराज 86 सो थे
87 - भगवान शीतलनाथ जी के गणधर 87 थे
88 - भगवान पुष्पदन्त जी के गणधर 88 थे
89 - आचार्य , उपाध्याय और साधु परमेष्ठी के मूलगुण 89 होते है
90 - जम्बूद्वीप की कुल नदियाँ 90 है
91 - अधोग्रैवेयक के चैताल्य 91 है
92 - सामान्य मनुष्य के चौथे गुणस्थान मे कर्म उदय 92 होते है
93 - नामकर्म के भेद 93 होते है
94 - भगवान चन्द्रप्रभ जी के एक कम 94 गणधर थे
95 - भगवान सुपार्श्वनाथ जी के 95 गणधर थे
96 - चक्रवर्ती की 96 हजार रानीयाँ होती है
97 - कुभोगभुमियाँ एक कम 97 होती है
98 - जीव समास के 98 भेद है
99 - सुमेरू पर्वत पृथ्वी से 99 हजार योजन ऊँचा-
100-इंद्रो की कुल संख्या 100 होती है।
ये है जैन धर्म की गिनती।।।।
जय जिनेन्द्र 

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