Thursday 3 August 2017

श्रध्दा

एक महान रहस्यदर्शी मिलेरेप्पा के बारे में ऐसा ही कहा जाता है। जब तिब्बत में वह अपने गुरु के पास गया तो वह इतना अधिक विनम्र, इतना पवित्र और इतना अधिक प्रामाणिक था कि वहां अन्य शिष्यों को उससे ईर्ष्या होने लगी। यह निश्चित था कि वह गुरु का उत्तराधिकारी बनता। और वास्तव में उस आश्रम में राजनीति चल रही थी, इसलिए उन लोगों ने उसे मार डालने का प्रयास किया। एक दिन उन लोगों ने उससे कहा—’‘ यदि तुम वास्तव में सद्गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखते हो तो क्या तुम इस पहाड़ी से नीचे कूद सकते हो? यदि तुम वास्तव में गुरु पर विश्वास करते हो, यदि तुम्हारी श्रद्धा सच्ची है तो तुम्हें कुछ भी हानि नहीं हो सकती।’’
और मिलेरेप्पा बिना किसी हिचक के, बिना एक क्षण सोचे पहाड़ी से नीचे कूद पड़ा। वे दौडते हुए नीचे पहुंचे क्योंकि वह लगभग तीन हजार फुट गहरी घाटी थी। उसकी इधर—उधर बिखरी हड्डियां खोजने के लिए वे लोग नीचे पहुंचे, लेकिन वह वहां पद्यासन लगाये बहुत प्रसन्न और अत्यधिक आनंदपूर्ण स्थिति में बैठा मिला।
उसने अपने नेत्र खोले और कहा— '' तुम लोग ठीक कहते थे, विश्वास और श्रद्धा ही रक्षा करते हैं।’’
उन लोगों ने सोचा कि यह जरूर ही कोई संयोग हो सकता है। इसलिए जब एक दिन एक घर में आग लगी थी तो उन लोगों ने उससे कहा—’‘ यदि तुम अपने सद्गुरु से प्रेम करते हो, उन पर श्रद्धा रखते हो, तो इस घर के अंदर जाकर लोगों को बचाओ।’’
वह तुरंत उस घर में लगी आग के अंदर चला गया, जहां एक स्त्री और एक बच्चा रह गया था। आग बहुत भयानक थी और सभी यह आशा कर रहे थे कि वह जल जायेगा, लेकिन वह बिना जले बाहर आ गया।
एक दिन वे सभी कहीं जा रहे थे और सभी को एक नदी पार करनी थी। उन लोगों ने उनसे कहा—’‘ तुम्हें तो नाव से नदी पार करने की कोई जरूरत है ही नहीं। तुम्हारे पास तो इतनी महान श्रद्धा और विश्वास है, तुम तो नदी पर चल सकते हो। और वह नदी के जल पर चलता हुआ उस पार जा पहुंचा।’’
यह पहला अवसर था कि सद्गुरु ने यह चमत्कार देखा। वह उसके प्रति अनजान था। जब उसे पहाड़ी से घाटी में कूदने को और जलते घर में प्रवेश करने को कहा गया था। वह इन घटनाओं के प्रति होशपूर्ण था ही नहीं। लेकिन इस बार उसने नदी किनारे स्वयं खड़े—खड़े उस नदी के जलपर चलते हुए देखा था।
उसने मिलेरेप्पा से कहा—’‘ तुम यह क्या कर रहे हो? यह तो असम्भव है।’’
और मिलेरेप्पा ने कहा—’‘ बिलकुल भी असम्भव नहीं है। मैं यह सब कुछ आपकी ही शक्ति द्वारा ही कर रहा हूं।’’
अब वह सद्गुरु विचार में पड़ गया—’‘ यदि मेरे नाम और मेरी शक्ति से यह अज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति यह सब कुछ कर सकता है... और मैंने स्वयं कभी ऐसी कोशिश ही नहीं की।’’
इसलिए उसने कोशिश की और वह नदी में डब गया। इसके बाद उसके बारे में कभी कुछ भी नही सुना गया।
एक ऐसा सद्गुरु जो बोध को उपलब्ध नहीं भी हुआ हो, उसके प्रति भी यदि श्रद्धा गहरी हो, तो वह भी तुम्हारे जीवन में क्रांति ला सकता है। और इसका विपरीत भी सत्य है, एक बुद्ध भी तुम्हारी कोई भी सहायता नहीं कर सकता, यदि तुम्हारी प्यास गहरी और सच्ची नहीं है। यह सभी कुछ तुम्हीं पर निर्भर करता है पूरी तरह तुम्हीं पर।

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